महत्वपूर्ण संसदीय शब्दावली प्रश्नकाल : संसद के दोनों सदनों में प्रारम्भ का एक घंटा ( 11 बजे से 12 बजे तक ) प्र...
महत्वपूर्ण संसदीय शब्दावली
प्रश्नकाल:
संसद के
दोनों सदनों में
प्रारम्भ का एक
घंटा (11 बजे से
12 बजे तक) प्रश्नकाल
कहलाता है। इस
समय संसद के
सदस्य सरकार से
उसके मंत्रालयों के
कार्यकरण के बारे
में प्रश्न करते
हैं। यह कार्यवाही
संसदीय प्रक्रिया के
नियमों के तहत
होती है।
शून्यकाल:
प्रश्नकाल की
समाप्ति और भोजनावकाश
के बीच की
एक घंटे की
अवधि (12 बजे से
1
बजे) को शून्यकाल
कहा जाता है।
इस अवधि में
सदस्य बिना किसी
पूर्व सूचना के
सरकार से प्रश्न
पूछते हैं। इसका
संसद के प्रक्रिया
नियमों में
कोई उल्लेख
नहीं है। यह
नाम मीडिया द्वारा
दिया गया है।
शून्यकाल के अन्तर्गत
विविध कार्यवाहियाँ आती
है, जैसे ध्यानाकर्षण
प्रस्ताव, प्रश्न या
सरकारी वक्तव्य तथा
कार्य स्थगन प्रस्ताव
आदि।
तारांकित एवं अतारांकित प्रश्न :
सदन में
जिन प्रश्नों का
उत्तर मौखिक रूप
में दिया जाता
है (संबंधित मंत्री
द्वारा) वे तारांकित
प्रश्न कहलाते हैं।
साथ ही जिन
प्रश्नों का उत्तर लिखित
रूप में दिया
जाता है, अतारांकित
प्रश्न कहलाते हैं।
परम्परावश तारांकित प्रश्नों
के सामने तारे
की तरह चिन्ह
बना दिया जाता
है।
विशेषाधिकार:
यदि कोई
मंत्री तथ्यों को
छिपाकर संसद सदस्यों
के विशेषाधिकार का
उल्लंघन करता है,
तो कोई भी
संसद सदस्य उस
मंत्री के विरूद्ध
विशेषाधिकार प्रस्ताव रख
सकता है।
निन्दा प्रस्ताव :
लोकतंत्र में
उत्तरदायी शासन के लिए
यह बहुत उपयोगी
है। यह सरकार
या किसी मंत्री
के किसी कार्या
या नीतियों की
निंदा करने हेतु
उसके विरूद्ध लाया
जाता है। निन्दा
का मत पारित
हो जाने पर
सरकार या मंत्री
को इस्तीफा देना
पड़ता है।
बजट:
संविधान में
अनुच्छेद 112 के तहत
‘बजट’ के
बारे में प्रावधान
किया गया। इसे
संविधान में ”वार्षिक
वित्तीय विवरण“ के
नाम से जाना
जाता है। इसके
माध्यम से प्रतिवर्ष
भारत सरकार के
आगामी वित्तीय
वर्ष के
लिए अनुमानित प्राप्तियों
और अनुमानित व्यय
से संबंधित एक
”वार्षिक वित्तीय
विवरण“ राष्ट्रपति संसद
के समक्ष रखवाता
है।
समेकित निधि (अनुच्छेद 266)
:
सरकार को
प्राप्त होने वाले
सभी राजस्व, सरकार
द्वारा लिए जाने
उधार और ऋण
वसूलियों से प्राप्त
धनराशियाँ समेकित निधि
में दिखाई जाती
है। सरकार का
सभी खर्च संचित
निधि से ही
किया जाता है
और जब तक
संसद की स्वीकृति
नहीं मिल जाती
तब तक इस
निधि से कोई
रकम नहीं निकाली
जा सकती है।
कुछ व्यय संसद
द्वारा इस निधि
पर भारित घोषित
कर दिया जाता
है, भारित घोषित
विषयों पर खर्च
हेतु संसद की
स्वीकृति आवश्यक नहीं
है।
आकस्मिकता निधि (अनुच्छेद 267)
:
कभी-कभी
ऐसे विषय व
अवसर आ जाते
हैं, जब सरकार
को संसद की
स्वीकृति मिलने के
पहले ही कुछ
ऐसा जरूरी खर्च
करना पड़ता है,
जिसका पहले से
अंदाजा नहीं रहता।
इस तरह की
परिस्थितियों के खर्च
आकस्मिक निधि से
किए जाते हैं।
लोक खाता (अनुच्छेद 267)
:
कुछ लेन-देन
ऐसे हैं जिनमें
सरकार लगभग एक
बैंकर की तहर
काम करती है,
जैसे - भविष्य निधियों
के लेन-देन,
अल्प बचत संग्रह,
अन्य जमा आदि।
इस तरह जो
रकमें प्राप्त होती
हैं, उन्हें लोक
खातें में दर्शाया
जाता है।
अनुदान मांग (अनुच्छेद 113)
:
इस अनुच्छेद
के अनुसार भारत
की ‘संचित निधि’
पर भारित व्यय
से संबंधित ‘प्राक्कलन’
संसद में मतदान
के लिए पेश
नहीं किए जायेंगे,
किन्तु संसद में
मतदान के लिए
खर्चे की प्रत्येक
मांग (मद) पर
बहस का अधिकार
होगा। इस अनुच्छेद
के तहत भारत
सरकार द्वारा उसके
समस्त मंत्रालयों के
आमागी वित्तीय वर्ष
में होने वाले
व्ययों की पूर्ति
के लिए संसद
से अनुदान की
माँग की जाती
है। संसद किसी
माँग को स्वीकार
कर सकती है,
कम कर सकती
है या उसे
पूरी तरह से
अस्वीकार कर सकता
है। किसी भी
अनुदान की माँग
राष्ट्रपति की सिफारिश
के बिना नहीं
की जा सकती
है।
ह्विप : ’
ह्विप’ एक
प्रकार का आवश्यक
निर्देश है, जो
दलीय अनुशासन के
लिए प्रयुक्त होता
है। ‘ह्विप’ जारी
करने पर संबंधित
दल का सदस्य
इसका उल्लंघन नहीं
कर सकता। यदि
कोई सदस्य उल्लंघन
करता है तो
व ‘Anti Defection Bill – 1985 के तहत
दल से निकाला
जा सकता है।
फ्लोर क्रांसिंग :
किसी राजनीतिक
दल के सदस्य
जब संसद या
विधानसभा में अपना
दल त्यागकर विरोधी
दल या सŸारूढ़
दल में शामिल
हो जाते हैं,
तो इसे ‘फ्लोर
क्रांसिंग’ कहते हैं।
कोरम :
सदस्यों की
वह न्यूनतम संख्या
जिनकी उपस्थिति में
विधायिका, समिति या
किसी संस्था की
कार्यवाही वैधानिक मानी
जाती है। इसके
अभाव में उसकी
कार्यवाही का संचालन
पूर्ण नहीं माना
जाता है। भारतीय
संसद के परिप्रेक्ष्य
में यह सदन
के कुल सदस्यों
का 1/10 माना है,
अर्थात् कम से
कम 55 सदस्य कोरम
के लिए अनिवार्य
है।
स्थगन प्रस्ताव :
स्थगन प्रस्ताव
किसी अविलंबनीय लोक
महत्व के मामले
की ओर पूरे
सदन का ध्यान
आकृष्ट करने के
लिए सदन की
सामान्य कार्यवाही को
स्थगित करने के
लिए लाया
जाने वाला प्रस्ताव
स्थगन प्रस्ताव कहलाता
है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव :
किसी अविलंबनीय
लोक महत्व के
मामले की ओर
सरकार अथवा संबंधित
मंत्री का ध्यान
आकृष्ट करने के
लिए लाया जाने
वाला प्रस्ताव ध्यानाकर्षण
प्रस्ताव कहलाता है।
विनियोग विधेयक (अनुच्छेद 114)
:
विनियोग-विधेयक
पारित हो जाने
के बाद ही
कोई धनराशि भारत
की संचित निधि
से निकाली जा
सकती है। अतएवं
लोकसभा द्वारा अनुदान
की माँग पारित
कर देने के
बाद एक विनियोग
विधेयक पेश किया
जाता है, जिससे
लोकसभा द्वारा अनुमोदित
सभी अनुदानों तथा
भारत की संचित
निधि पर भारित
व्यय की पूर्ति
के लिए धन
का विनियोग हो
सकता है।
अनुपूरक अनुदान (अनुच्छेद 115)
:
यह विनियोग
द्वारा किसी विशेष
सेवा पर चालू
वर्ष के लिए
व्यय किए जाने
के प्राधिकृत कोई
राशि अपर्याप्त पायी
जाती है या
बजट में उल्लिखित
न की गयी
किसी नयी सेवा
पर खर्च हेतु,
राष्ट्रपति एक अनुपूरक
अनुदान माँग संसद
के समक्ष पेश
करवाता है।
लेखानुदान, प्रत्यायानुदान और अपवादानुदान या अंतरिम बजट (अनुच्छेद 116)
:
जब देश
में राजनीतिक या
किसी अन्य कारण
से वार्षिक वित्तीय विवरण
न पेश किया
गया हो तथा
सरकार को तत्काल
धन की आवश्यकता
हो तो संसद
में लेखानुदान या
अंतरिम बजट पेश
किया जाता है।
कटौती प्रस्ताव :
कटौती प्रस्ताव
लोकसभा में लाया
जाता है। यह
तीन प्रकार का
होता है- नीतिगत
कटौती प्रस्ताव, मितव्ययिता
कटौती एवं सांकेतिक
कटौती। कटौती प्रस्ताव
के पारित होने
का मतलब - ”सरकार
के खिलाफ अविश्वास“
अर्थात् सरकार का
पतन। इस प्रकार
यह कहा जा
सकता है कि
कटौती प्रस्ताव संसद
सदस्यों के लिए
एक प्रकार के
वीटो पावर के
समान है।
विश्वास एवं अविश्वास प्रस्ताव :
विश्वास का
प्रस्ताव जहाँ सत्ता
पक्ष द्वारा लोकसभा
में अपना बहुमत
सिद्ध करने के
लिए लाया जाता
है, वहीं अविश्वास
प्रस्ताव विपक्ष द्वारा
सत्ता पक्ष के
विरूद्ध लोकसभा में
अपना अविश्वास प्रकट
करने के लिए
लाया जाता है। विश्वास
प्रस्ताव की प्रक्रिया
का नियमों में
कोई उल्लेख नहीं
है, जबकि अविश्वास
प्रस्ताव लोकसभा के
प्रक्रिया नियम - 198 के
तहत लाया जाता
है। सर्वप्रथम 1979 में
तत्कालीन चरण सिंह
सरकार को लोकसभा
का विश्वास हासिल
करने के लिए
निर्देश दिया गया
था।
असंबद्ध सदस्य :
संसद के
जिस सदस्य के
विरूद्ध दल-बदल
निरोधक अधिनियम के
अधीन लोकसभा अध्यक्ष/राज्यसभा सभापति
के समक्ष कार्यवाही
लम्बित रहती है,
उस समय वह
असंबद्ध सदस्य कहा
जाता है।
गिलोटीन :
जब सदन
में किसी विषय
पर हो रही
चर्चा को बंद
करके मत विभाजन
की घोषणा पीठासीन
अधिकारी द्वारा की
जाती है, तो
इस प्रक्रिया को
गिलोटीन कहा जाता
है।
व्यवस्था का प्रश्न :
यह एक
असाधारण प्रक्रिया है,
जिसके उठाये जाने
पर सदन की
कार्यवाही निलम्बित हो
जाती है और
उस समय बोल
रहे सदस्य को
अपना भाषण रोकना
पड़ता है। इसका
उद्देश्य सदन के
कार्यों को विनियमित
करने के लिए
नियमों, निर्देशों तथा
संविधान के प्रवर्तन
में अध्यक्ष की
सहायता करना है।
नियम 115
:
इस नियम
के अन्तर्गत संसद
के दोनों सदनों
के सदस्यों को
किसी मंत्री या
सदस्य के वक्तव्य
के तथ्य की
त्रुटियों पर आपत्ति
उठाने का अधिकार
है।
नियम 184
(लोक सभा में 184 के तहत तथा राज्यसभा में 168 के तहत मतदान का प्रावधान) :
इस नियम
के तहत कोई
मामला संसद के
किसी सदन मे
स्वीकृत हो जाने
पर उस विषय
में चर्चा के
साथ-साथ मत
विभाजन का प्रावधान
किया गया है।
नियम 193
:
इस प्रावधान
के तहत संसद
के किसी सदन
का कोई भी
सदस्य किसी सार्वजनिक
महत्व के अविलम्बनीय
विषय पर अल्पकालिक
चर्चा की नोटिस
दे सकता है।
इसमें प्रस्ताव के
माध्यम से चर्चा
न होने के
कारण चर्चा में
मत विभाजन नहीं
होता केवल सभी
पक्ष के सदस्य
सम्बन्धित विषय पर
अपने विचार प्रकट
करते हैं।
नियम 377
:
जो विषय
किसी भी प्रस्ताव
के अन्तर्गत नहीं
उठाये जा सकते
उन्हें इस नियम के
अन्तर्गत उठाया जा
सकता है।
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