वचन, वचन की पहचान, कारक, विभक्ति या परसर्ग, संज्ञा शब्दों की रुप रचना, करण कारक और अपादान कारक में अन्तर, कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अन्तर

वचन
शब्द
के जिस रुप से व्यक्ति या वस्तु के एक या अनेक होने का ज्ञान हो, उसे वचन कहते है ।
वचन के भेद-
एकवचन
|
बहुवचन
|
शब्द
के
जिस
रुप
से
एक
ही
वस्तु
का
ज्ञान
हो,
उसे
एकवचन
कहते
है
। जैसे
– लड़्का,
घोड़ा,
पुस्तक
आदि
।
|
शब्द
के जिस रुप से
एक से अधिक वस्तुओं
का ज्ञान हो, उसे बहुवचन कहते
है । जैसे – लड़्के, घोड़े, पुस्तके आदि ।
|
बहुवचन बनाने के नियम
1.अकारान्त
स्त्रीलिंग
संज्ञा
शब्दों
के अन्तिम ‘अ’ को ‘एँ’ कर देते है ।
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
गाय
|
गायें
|
बात
|
बातें
|
भैस
|
भैसें
|
पुस्तक
|
पुस्तकें
|
आँख
|
आँखे
|
रात
|
रातें
|
2. आकारान्त
पुल्लिंग
शब्दों
मे ‘आ’ को ‘ए’ कर देते है -
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
मुर्गा
|
मुर्गें
|
कुत्ता
|
कुत्ते
|
पहिया
|
पहियें
|
घोड़ा
|
घोड़े
|
कपड़ा
|
कपड़े
|
गधा
|
गधे
|
बेटा
|
बेटे
|
लड़्का
|
लड़्कें
|
अपवाद – सम्बन्धवाचक और संस्कृत के कुछ आकारान्त शब्दो का रुप नही बदलता ।
जैसे – चाचा चाचा पिता पिता
3. आकारान्त
स्त्रीलिंग
संज्ञा
शब्दों
के आगे ‘ए’ लगा देते है –
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
कन्या
|
कन्याएँ
|
गाथा
|
गाथाएँ
|
शिला
|
शिलाएँ
|
सभा
|
सभाएँ
|
अध्यापिका
|
अध्यापिकाएँ
|
माला
|
मालाएँ
|
महिला
|
महिलाएँ
|
माता
|
माताएँ
|
लता
|
लताएँ
|
पाठशाला
|
पाठशालाएँ
|
४. इकारान्त और ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों मे ‘याँ’ लगाकर ईकारान्त की ई को ह्र्स्व इ में बदल देते है
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
लड़्की
|
लड़कियाँ
|
रीति
|
रीतियाँ
|
नदी
|
नदियाँ
|
कटोरी
|
कटोरियाँ
|
स्त्री
|
स्त्रियाँ
|
तिथि
|
तिथियाँ
|
विधि
|
विधियाँ
|
जाति
|
जातियाँ
|
कहानी
|
कहानियाँ
|
नारी
|
नारियाँ
|
थाली
|
थालियाँ
|
रानी
|
रानियाँ
|
५. ‘या’ अन्त वाले स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में ‘याँ’ हो जाता है ।
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
कुतिया
|
कुतियाँ
|
डिबिया
|
डिबियाँ
|
लुटिया
|
लुटियाँ
|
चिड़िया
|
चिड़ियाँ
|
गुड़िया
|
गुड़ियाँ
|
चुहिया
|
चुहियाँ
|
बिछिया
|
बिछियाँ
|
खटिया
|
खटियाँ
|
६.
कुछ शब्दो में ‘उ’,’ऊ’, तथा ‘औ’ के साथ बहुवचन बनाते समय ‘ऍँ’ जोड़ देते है और दीर्घ ‘ऊ’ को ह्रस्व ‘उ’ में बदल देते है –
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
वधू
|
वधुएँ
|
धेनू
|
धेनुएँ
|
वस्तु
|
वस्तुएँ
|
गौ
|
गौएँ
|
७. कुछ शब्दों में दल, वृन्द, गण, जन, लोग आदि शब्द जोड़कर भी उसके बहुवचन रुप बनाए जाते है -
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
अध्यापक
|
अध्यापकगण
|
अमीर
|
अमीर लोग
|
हम
|
हम लोग
|
विद्यार्थी
|
विद्यार्थीगण
|
गरीब
|
गरीब लोग
|
सेना
|
सेना दल
|
टिड्डी
|
टिड्डी दल
|
मित्र
|
मित्रवर्ग
|
दुश्मन
|
दुश्मन लोग
|
गुरु
|
गुरुजन
|
आप
|
आपलोग
|
शिक्षक
|
शिक्षक वर्ग
|
८.कुछ शब्दों के एकवचन और बहुवचन दोनों में समान रुप रहते है –
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
बाजार
|
बाजार
|
फल
|
फल
|
भाई
|
भाई
|
जल
|
जल
|
मुनि
|
मुनि
|
बालक
|
बालक
|
प्रेम
|
प्रेम
|
क्रोध
|
क्रोध
|
हाथी
|
हाथी
|
कवि
|
कवि
|
ऋषि
|
ऋषि
|
वारि
|
वारि
|
विशेष – कई शब्द एक वचन और बहुवचन में समान होते है, परन्तु कारक चिन्ह (ने, में, को, आदि) पीछे लगाने से बहुवचन बनाते समय उन शब्दों के पीछे ‘ओ’ जोंड़ देते है
एकवचन
|
बहुवचन
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
साधु के लिए
|
साधुओं के लिए
|
हिन्दु ने
|
हिन्दुओं ने
|
चोर से
|
चोंरो से
|
बालक ने
|
बालकों ने
|
घर में
|
घरों में
|
ऋषि को
|
ऋषियों को
|
वचन की पहचान
१. वाक्य में वचन की पहचान (एकवचन और बहुवचन) संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द से होती है ।
(क) घोड़ा दौड़ रहा है । (क) घोड़े दौड़ रहे है ।
(ख) वह पड़ रहा था । (ख) वे पड़ रहे थे ।
(ग) में लिख रहा हूँ । (ग) हम लिख रहें है ।
२. जब संज्ञा तथा सर्वनाम से वचन की पहचान न हो तो क्रिया से उसकी पहचान की जाती है ।
(क) बालक खेल रहा है । (क) बालक खेल रहे है ।
(ख) हिरण दौड़ रहा है । (ख) हिरण दौड़ रहे है ।
(ग) मोर नाच रहा था । (ग) मोर नाच रहे थे ।
एक वचन
के स्थान
पर बहुवचन
का प्रयोग
१. आदरसूचक शब्द के साथ एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग होता है ।
(क) मेरे पिताजी दफ्तर जा रहे है । (ख) श्रीराम सबके प्यारे थे ।
२. बड़्प्पन दिखाने के लिए बहुवचन का प्रयोग होता है ।
(क) महात्मा गाँधी महान देश भक्त थे । (ख) वे कई बार देश के लिए जेल गए ।
३. दर्शन, आँसू, हस्ताक्षर, होश, प्राण, बाल, लोग आदि शब्द सदा बहुवचन में प्रयुक्त होते है ।
दर्शन
- आपके दर्शन हेतु मै यहाँ उपस्थित हुआ हूँ ।
आसूँ
- उसके आसूँ रोके नही रुक रहे थे ।
हस्ताक्षर
- उसके हस्ताक्षर देखकर ही मैने उसे रुपये दिये ।
बाल
- मेरे बाल बहुत छोटे होते जा रहे है ।
लोग
- लोग कहते है कि वह बहुत चालाक है ।
४. वाक्य बनाते समय कई एकवचन शब्दो के साथ गण, वर्ग, दल, आदि शब्द जोंड़ कर इस प्रकार वाक्य बनाते है ।
विद्यार्थी
- विद्यार्थीगण भाषण सुन रहे थे ।
अध्यापक
- आज भी अध्यापकवर्ग देश का निर्माण कर रहे है ।
टिड्डी
- टिड्डीदल खेत की और बढ़ रहा है ।
हिन्दू
- हिन्दू लोग सदा से ही उदार रहे है ।
बहुवचन के
स्थान पर
एकवचन
१. (क) भुसावल का केला प्रसिद्ध है । (ख) मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ।
(ग) आधुनिक मानव स्वार्थी होता जा रहा है । (घ) मेरे मित्र के पास लाख रुपया है ।
२. स्वाभिमान अथवा अधिकार को प्रगट करने के लिए संज्ञा, सर्वनाम आदि का बहुवचन में प्रयोग होता है –
(क) हम (मैं) कहते है कि यह बात सत्य है । (ख) हम (मैं) तुम्हारे पिता होने के नाते तुम्हें सीख दे रहे है ।
(ग) पतञ्जलि ने कहा है कि हमारे सिद्धान्तों को कौन काट सकता है । (घ) अलंकारों का वर्णन हम आगे चलकर करेगें ।
कारक
कारक
शब्द का शाब्दिक अर्थ है – करने वाला अर्थात क्रिया को पूरी तरह करने में किसी न किसी भूमिका को निभाने वाला । संज्ञा
या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से पता चले, उसे कारक कहते है
विभक्ति या
परसर्ग
कारकों का रुप प्रकट करने के लिये उनके साथ जो शब्द चिन्ह लगते है, उन्हें विभक्ति कहते है । इन कारक चिन्हों या विभक्तियों को परसर्ग भी कहतें है । जैसे – ने, में, को, से ।
कारक के भेद
कारक
|
चिन्ह
|
|
१.
|
कर्ता
|
ने
|
२.
|
कर्म
|
को
|
३.
|
करण
|
से (द्वारा)
|
४.
|
सम्प्रदान
|
के लिए
|
५.
|
अपादान
|
से
|
६.
|
सम्बन्ध
|
का, की, के
|
७.
|
अधिकरण
|
में, पर
|
८.
|
सम्बोधन
|
हे, अरे
|
कर्ता कारक – क्रिया के करने वाले को कर्ता कारक कहतें है । यह पद प्रायः संज्ञा या सर्वनाम होता है । इसका सम्बन्ध क्रिया से होता है । – राम ने पत्र लिखा । यहाँ कर्ता राम है । कर्ता कारक का प्रयोग दो प्रकार से होता है –
परसर्ग सहित
|
परसर्ग रहित
|
जैसे–राम ने पुस्तक पढ़ी ।
यहाँ कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग है । भूतकाल की सकर्मक क्रिया होने पर कर्ता के साथ ‘ने’ परसर्ग लगाया जाता है ।
|
(क) भूतकाल की अकर्मक क्रिया के साथ परसर्ग ‘ने’ नही लगता । जैसे –राम गया । मोहन गिरा ।
(ख) वर्तमान और भविष्यत काल में परसर्ग का प्रयोग नही होता ।
जैसे – बालक लिखता है (वर्तमान काल)
रमेश घर जायगा । (भविष्य काल)
|
कर्म कारक–जिस वस्तु पर क्रिया का फल पड़ता है, संज्ञा के उस रुप को कर्म कारक कहते है । इसका विभक्ति चिन्ह ‘को’ है ।
जैसे - (क) राम ने रावण को मारा । यहाँ मारने की क्रिया का फल रावण पर पड़ा है ।
(ख) उसने पत्र लिखा । यहाँ लिखना क्रिया का फल ‘पत्र’ पर है, अतः पत्र कर्म है ।
करण कारक – संज्ञा के जिस रुप से क्रिया के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहते है । इसका विभक्ति चन्ह है – से (द्वारा) जैसे –राम ने रावण को बाण से मारा । यहाँ राम बाण से या बाण द्वारा रावण को मारने का काम करता है । यहाँ ‘बाण से’ करण कारक है ।
सम्प्रदान कारक – सम्प्रदान का अर्थ है देना । जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए उसका बोध कराने वाले संज्ञा के रुप को सम्प्रदान कारक कहते है । इसका विभक्ति चिन्ह ‘के लिए’ या ‘को’ है । जैसे मोहन ब्राह्मण को दान देता है या मोहन ब्राह्मण के लिए दान देता है । यहाँ ब्राह्मण को या ब्राह्मण के लिए सम्प्रदान कारक है ।
अपादान कारक – संज्ञा के जिस रुप से अलगाव का बोध हो उसे अपादान कारक कहते है । इसका विभक्ति चिन्ह ‘से’ है । जैसे – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं । मदन घोड़े से गिर पड़ा । यहाँ वृक्ष से और घोड़े से अपादान कारक है । अलग होने के अतिरिक्त निकलने, सीखने, डरने, लजाने, अथवा तुलना करने के भाव में भी इसका प्रयोग होता है ।
निकलने के अर्थ में
- गंगा
हिमालय से निकलती है । डरने के अर्थ में
- चोर पुलिस से डरता है ।
सीखने के अर्थ में
- विद्यार्थी अध्यापक से सीखते है । लजाने के अर्थ में
- वह ससुर से लजाती है ।
तुलना के अर्थ में
- राकेश रुपेश से चतुर है । दूरी के अर्थ में
- पृथ्वी सूर्य से दूर है ।
सम्बन्ध कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका सम्बन्ध वाक्य की दूसरी संज्ञा से प्रकट हो, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं । इसके परसर्ग हैं – का, के, की, ना, ने, नो, रा, रे, री आदि । जैसे – राजा दशरथ का बड़ा बेटा राम था । राजा दशरथ के चार बेटे थे । राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी । अपने पास एक मकान है । मेरा घर दिल्ली में हैं । मेरी बहन दसवीं कक्षा में हैं ।
विशेष – संबंध कारक की यह विशेषता हैं कि उसकी विभक्तियाँ (का, के, की) संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं ।
जैसे – (क) लड़के का सिर दुख रहा है ।
(ख) लड़के के पैर में दर्द है ।
(ग) लड़के की टाँग में चोट है ।
अधिकरण कारक – अधिकरण का अर्थ है आधार या आश्रय । संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से क्रिया के आधार (स्थान, समय, अवसर आदि) का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहतें हैं । इस कारक के विभक्ति चिन्ह हैं – में, पे, पर । जैसे – (क) उस कमरे में चार चोर थे। (ख) मेज पर पुस्तक रखी थी ।
सम्बोधन कारक – शब्द के जिस रुप से किसी को सम्बोधित किया जाए या पुकारा जाए, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं । इसमें ‘हे’, ‘अरे’ का प्रयोग किया जाता है । जैसे – हे प्रभों, क्षमा करो । अरे बच्चो, शान्त हो जाओ ।
विशेष :– कभी–कभी नाम पर जोर देकर सम्बोधन का काम चला लिया जाता है । वहाँ कारक चिन्हों की आवश्यकता नही होती ।
जैसे –अरे । आप आ गए । अजी । इधर तो आओ ।
संज्ञा शब्दों
की रुप
रचना
आकारान्त पुल्लिंग शब्द ‘लड़का’
कारक
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
कर्ता
|
लड़का, लड़के ने
|
लड़के, लड़कों ने
|
कर्म
|
लड़के को
|
लड़को को
|
करण
|
लड़के से
|
लड़कों से
|
सम्प्रदान
|
लड़के को, के लिए
|
लड़कों को, के लिए
|
अपादान
|
लड़के से
|
लड़कों से
|
सम्बन्ध
|
लड़के का, के की
|
लड़कों का, के, की
|
अधिकरण
|
लड़के में, पर
|
लड़कों में, पर
|
सम्बोधन
|
हे लड़के
|
हे लड़कों
|
ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘लड़की’ शब्द
कारक
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
कर्म
|
लड़के को
|
लड़को को
|
करण
|
लड़के से
|
लड़कों से
|
सम्प्रदान
|
लड़के को, के लिए
|
लड़कों को, के लिए
|
अपादान
|
लड़के से
|
लड़कों से
|
सम्बन्ध
|
लड़के का, के की
|
लड़कों का, के, की
|
अधिकरण
|
लड़के में, पर
|
लड़कों में, पर
|
सम्बोधन
|
हे लड़के
|
हे लड़कों
|
ईकारान्त स्त्रीलिंग ‘लड़की’ शब्द
कारक
|
एकवचन
|
बहुवचन
|
कर्ता
|
लड़की, लड़की ने
|
लड़कियाँ, लड़कियों ने
|
कर्म
|
लड़की को
|
लड़कियों को
|
करण
|
लड़की से (द्वारा)
|
लड़कियों से, द्वारा
|
सम्प्रदान
|
लड़की को, के लिए
|
लड़कियों को, के लिए
|
अपादान
|
लड़की से
|
लड़कियों से
|
सम्बन्ध
|
लड़की का, के, की
|
लड़कियों का, के, की
|
अधिकरण
|
लड़की में, पर
|
लड़कियों में पर
|
सम्बोधन
|
हे लड़की
|
हे लड़कियों
|
करण कारक और अपादान कारक में अन्तर
दोनों
कारकों का विभक्ति चिन्ह ‘से’ है , पर दोनों के स्वरुप में अन्तर है ।
जहाँ
साधन के अर्थ में से, के द्वारा का प्रयोग हो वहाँ करण कारक होता है । जैसे
- सीता कलम से लिखती है । (के द्वारा)
जहाँ
एक वस्तु का दुसरी वस्तु से अलग होना पाया जाए वहाँ अपादान कारक होता है । जैसे - बालक साइकिल से गिर पड़ा (से, अलग)
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अन्तर
दोनों
कारकों में ‘को’ परसर्ग का प्रयोग होने पर भी दोनों में अन्तर है ।
वह शब्द जिस पर कर्ता द्वारा किए गए व्यापार क्रिया का फल पड़ता है, कर्म कारक कहलाता है । जैसे – (क) राम ने श्याम को बुलाया । (यहाँ ‘को’ परसर्ग का फल श्याम पर पड़ता है ।) (ख) राकेश स्कूल (को) गया । (यहाँ को न होते हुए भी कर्ता राकेश के व्यापार क्रिया का फल स्कूल पर पड़ रहा है ।
सम्प्रदान में देने या उपकार करने का भाव मुख्य होता है । अत: देने या उपकार करने की क्रिया में सम्प्रदान कारक का बोध कराएगा । जैसे – (क) मालिक ने नौकर को धन दिया । यहाँ देने का भाव सम्प्रदान कारक को प्रकट कर रहा है ।
(ख) पिता पुत्र के लिए पुस्तक लाया । यहाँ के लिए विभक्ति चिन्ह उपकार की और संकेत करता है ।
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