प्रमुख लोकोक्तियाँ व उनका अर्थ
प्रमुख लोकोक्तियाँ व उनका अर्थ
- धनवंती को काँटा लगा दौड़े लोग हजार
- धनी आदमी को थोड़ा-सा भी कष्ट हो तो बहुत लोग उनकी सहायता को आ जाते हैं।
- धन्ना सेठ के नाती बने हैं
- अपने को अमीर समझना।
- धर्म छोड़ धन कौन खाए
- धर्म विरूद्ध कमाई सुख नहीं देती।
- धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं
- अनुभवी होना।
- धोबी का गधा घर का ना घाट का
- कहीं भी इज्जत न पाना।
- धोबी पर बस न चला तो गधे के कान उमेठे
- शक्तिशाली पर आने वाले क्रोध को निर्बल पर उतारना।
- धोबी के घर पड़े चोर, लुटे कोई और
- धोबी के घर चोरी होने पर कपड़ेे दूसरों के ही लुटते हैं।
- धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को
- सब अपने ही नुकसान की बात करते हैं।
- नंगा बड़ा परमेश्वर से
- निर्लज्ज से सब डरते हैं।
- नंगा क्या नहाएगा क्या निचोड़ेगा
- अत्यन्त निर्धन होना।
- नंगे से खुदा डरे
- निर्लज्ज से भगवान भी डरते हैं।
- न अंधे को न्योता देते न दो जने आते
- गलत फैसला करके पछताना।
- न इधर के रहे, न उधर के रहे
- दुविधा में रहने से हानि ही होती है।
- नकटा बूचा सबसे ऊँचा
- निर्लज्ज से सब डरते हैं इसलिए वह सबसे ऊँचा होता है।
- नक्कारखाने में तूती की आवाज
- महत्व न मिलना।
- नदी किनारे रुखड़ा जब-तब होय विनाश
- नदी के किनारे के वृक्ष का कभी भी नाश हो सकता है।
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
- ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके/असम्भव शर्त लगाना।
- नमाज छुड़ाने गए थे, रोजे गले पड़े
- छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के बदले बड़ी मुसीबत में पड़ना।
- नया नौ दिन पुराना सौ दिन
- साधारण ज्ञान होने से अनुभव होने का अधिक महत्व होता है।
- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी
- ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके।
- नाई की बरात में सब ही ठाकुर
- सभी का अगुवा बनना।
- नाक कटी पर घी तो चाटा
- लाभ के लिए निर्लज्ज हो जाना।
- नाच न जाने आँगन टेढ़ा
- बहाना करके अपना दोष छिपाना।
- नानी के आगे ननिहाल की बातें
- बुद्धिमान को सीख देना।
- नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे
- खाना किसी का, गाना किसी का।
- नानी क्वाँरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह
- झूठी बड़ाई।
- नाम बड़े दर्शन छोटे
- झूठा दिखावा।
- नाम बढ़ावे दाम
- किसी चीज का नाम हो जाने से उसकी कीमत बढ़ जाती है।
- नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमाए खाए
- बदनामी से बुरा और नेकनामी से भला होता है।
- नीचे की साँस नीचे, ऊपर की साँस ऊपर
- अत्यधिक घबराहट की स्थिति।
- नीचे से जड़ काटना, ऊपर से पानी देना
- ऊपर से मित्र, भीतर से शत्रु।
- नीम हकीम खतरा-ए-जान
- अनुभवहीन व्याक्ति के हाथों काम बिगड़ सकता है।
- नेकी और पूछ-पूछ
- भलाई का काम।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस
- अत्यन्त मंद गति से कार्य करना।
- नौ नकद, न तेरह उधार
- नकद का काम उधार के काम से अच्छा।
- नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली
- जीवन भर कुकर्म करके अन्त में भला बनना।
- पंच कहे बिल्ली तो बिल्ली ही सही
- सबकी राय में राय मिलाना।
- पंचों का कहना सिर माथे पर, पर नाला वहीं रहेगा
- दूसरों की सुनकर भी अपने मन की करना।
- पकाई खीर पर हो गया दलिया
- दुर्भाग्य।
- पगड़ी रख, घी चख
- मान-सम्मान से ही जीवन का आनंद है।
- पढ़े तो हैं पर गुने नहीं
- पढ़-लिखकर भी अनुभवहीन।
- पढ़े फारसी बेचे तेल
- गुणवान होने पर भी दुर्भाग्यवश छोटा काम मिलना।
- पत्थर को जोंक नहीं लगती
- निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
- पत्थर मोम नहीं होता
- निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
- पराया घर थूकने का भी डर
- दूसरे के घर में संकोच रहता है।
- पराये धन पर लक्ष्मीनारायण
- दूसरे के धन पर गुलछर्रें उड़ाना।
- पहले तोलो, फिर बोलो
- सोच-समझकर मुँह खोलना चाहिए।
- पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा
- मिलकर काम करने पर हार-जीत की जिम्मेदारी एक पर नहीं आती।
- पाँचों उँगलियाँ घी में
- चैतरफा लाभ।
- पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं
- सब आदमी एक जैसे नहीं होते।
- पागलों के क्या सींग होते हैं
- पागल भी साधारण मनुष्य होता है।
- पानी केरा बुलबुला अस मानुस के जात
- जीवन नश्वर है।
- पानी पीकर जात पूछते हो
- काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना।
- पाप का घड़ा डूब कर रहता है
- पाप जब बढ़ जाता है तब विनाश होता है।
- पिया गए परदेश, अब डर काहे का
- जब कोई निगरानी करने वाला न हो, तो मौज उड़ाना।
- पीर बावर्ची भिस्ती खर
- किसी एक के द्वारा ही सभी तरह के काम करना।
- पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं
- वर्तमान लक्षणों से भविष्य का अनुमान लग जाता है।
- पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय
- सपूत स्वयं कमा लेगा, कपूत संचित धन को उड़ा देगा।
- पूरब जाओ या पच्छिम, वही करम के लच्छन
- स्थान बदलने से भाग्य और स्वभाव नहीं बदलता।
- पेड़ फल से जाना जाता है
- कर्म का महत्व उसके परिणाम से होता है।
- प्यासा कुएँ के पास जाता है
- बिना परिश्रम सफलता नहीं मिलती।
- फिसल पड़े तो हर गंगे
- बहाना करके अपना दोष छिपाना।
- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
- ज्ञान न होना।
- बकरे की जान गई खाने वाले को मजा नहीं आया
- भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।
- बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है
- शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल को दबा लेता है।
- बड़े बरतन का खुरचन भी बहुत है
- जहाँ बहुत होता है वहाँ घटते-घटते भी काफी रह जाता है।
- बड़े बोल का सिर नीचा
- घमंड करने वाले को नीचा देखना पड़ता है।
- बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात
- छोटा आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता।
- बनी के सब यार हैं
- अच्छे दिनों में सभी दोस्त बनते हैं।
- बरतन से बरतन खटकता ही है
- जहाँ चार लोग होते हैं वहाँ कभी अनबन हो सकती है।
- बहती गंगा में हाथ धोना
- मौके का लाभ उठाना।
- बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
- पीड$ा को सहकर ही समझा जा सकता है।
- बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
- रक्षक का भक्षक हो जाना।
- बाप भला न भइया, सब से भला रुपइया
- धन ही सबसे बड़ा होता है।
- बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज
- छोटे का बड़ेे से बढ़ जाना।
- बाप से बैर, पूत से सगाई
- पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव।
- बारह गाँव का चैधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
- बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है।
- बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
- एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं।
- बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
- काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है।
- बासी बचे न कुत्ता खाय
- जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।
- बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
- जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी।
- बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
- मूर्खतापूर्ण कार्य करना।
- बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
- बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता।
- बिल्ली और दूध की रखवाली?
- भक्षक रक्षक नहीं हो सकता।
- बिल्ली के सपने में चूहा
- जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।
- बिल्ली गई चूहों की बन आयी
- डर खत्म होते ही मौज मनाना।
- बीमार की रात पहाड़ बराबर
- खराब समय मुश्किल से कटता है।
- बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
- वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए।
- बुढ़ापे में मिट्टी खराब
- बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना।
- बुढिया मरी तो आगरा तो देखा
- प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा।
- बूँद-बूँद से घड़ा भरता है
- थोड़ा-थोड़ा जमा करने से धन का संचय होता है।
- बूढे तोते भी कही पढ$ते हैं
- बुढ़ापे में कुछ सीखना मुश्किल होता है।
- बिल्ली के भागों छींका टूटा
- सौभाग्य।
- बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय
- जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
- भरी गगरिया चुपके जाय
- ज्ञानी आदमी गंभीर होता है।
- भरे पेट शक्कर खारी
- समय के अनुसार महत्व बदलता है।
- भले का भला
- भलाई का बदला भलाई में मिलता है।
- भलो भयो मेरी मटकी फूटी मैं दही बेचने से छूटी
- काम न करने का बहाना मिल जाना।
- भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी
- काम न करने का बहाना मिल जाना।
- भागते भूत की लँगोटी ही सही
- कुछ न मिलने से कुछ मिलना अच्छा है।
- भीख माँगे और आँख दिखाए
- दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना।
- भूख लगी तो घर की सूझी
- जरूरत पड़ने पर अपनों की याद आती है।
- भूखे भजन न होय गोपाला
- भूख लगी हो तो भोजन के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं सूझता।
- भूल गए राग रंग भूल गई छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नून तेल लकड$ी
- गृहस्थीं के जंजाल में फँसना।
- भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय
- मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करना बेकार है।
- भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा
- जो तंग करे उसको कुछ दे-दिला के चुप करा दो।
- मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है
- गुण जन्मजात आते हैं।
- मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा
- प्रेयसी की हर चीज प्रेमी को प्यारी लगती है।
- मतलबी यार किसके, दम लगाया खिसके
- स्वार्थी व्यक्ति को अपना स्वार्थ साधने से काम रहता है।
- मन के लड्डुओं से भूख नहीं मिटती
- इच्छा करने मात्र से ही इच्छापूर्ति नहीं होती।
- मन चंगा तो कठौती में गंगा
- मन की शुद्धता ही वास्तविक शुद्धता है।
- मरज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों इलाज करता गया
- सुधार के बजाय बिगाड़ होना।
- मरता क्या न करता
- मजबूरी में आदमी सब कुछ करना पड़ता है।
- मरी बछिया बांभन के सिर
- व्यर्थ दान।
- मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जलाय
- बहुत अधिक नजदीकी होने पर कद्र घट जाती है।
- माँ का पेट कुम्हार का आवा
- संताने सभी एक-सी नहीं होती।
- माँगे हरड़, दे बेहड़ा
- कुछ का कुछ करना।
- मान न मान मैं तेरा मेहमान
- जबरदस्ती का मेहमान।
- मानो तो देवता नहीं तो पत्थर
- माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा।
- माया से माया मिले कर-कर लंबे हाथ
- धन ही धन को खींचता है।
- माया बादल की छाया
- धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं।
- मार के आगे भूत भागे
- मार से सब डरते हैँ।
- मियाँ की जूती मियाँ का सिर
- दुश्मन को दुश्मन के हथियार से मारना।
- मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं
- बातों से पेट नहीं भरता।
- मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू-थू
- मतलबी होना।
- मुँह में राम बगल में छुरी
- ऊपर से मित्र भीतर से शत्रु।
- मुँह माँगी मौत नहीं मिलती
- अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता।
- मुफ्त की शराब काजी को भी हलाल
- मुफ्त का माल सभी ले लेते हैं।
- मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक
- सीमित दायरा।
- मोरी की ईंट चैबारे पर
- छोटी चीज का बड़े काम में लाना।
- म्याऊँ के ठोर को कौन पकड़े
- कठिन काम कोई नहीं करना चाहता।
- यह मुँह और मसूर की दाल
- औकात का न होना।
- रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद
- दुःख झेलकर ही आदमी का अनुभव और सम्मान बढ़ता है।
- रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई
- घमण्ड का खत्म न होना।
- राजा के घर मोतियों का अकाल?
- समर्थ को अभाव नहीं होता।
- रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी
- रूठने से अपना ही नुकसान होता है।
- राम की माया कहीं धूप कहीं छाया
- कहीं सुख है तो कहीं दुःख है।
- राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी
- बराबर का मेल हो जाना।
- राम राम जपना पराया माल अपना
- ऊपर से भक्त, असल में ठग।
- रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना
- रोज कमाना रोज खाना।
- रोगी से बैद
- भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है।
- लड़े सिपाही नाम सरदार का
- काम का श्रेय अगुवा को ही मिलता है।
- लड्डू कहे मुँह मीठा नहीं होता
- केवल कहने से काम नहीं बन जाता।
- लातों के भूत बातों से नहीं मानते
- मार खाकर ही काम करने वाला।
- लाल गुदड़ी में नहीं छिपते
- गुण नहीं छिपते।
- लिखे ईसा पढ़े मूसा
- गंदी लिखावट।
- लेना एक न देना दो
- कुछ मतलब न रखना।
- लोहा लोहे को काटता है
- प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग होता है।
- वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है
- वहम सबसे बुरा रोग है।
- विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता
- किसी चीज का प्रभाव बदल नहीं सकता।
- शौकीन बुढिया मलमल का लहँगा
- अजीब शौक करना।
- शक्करखोरे को शक्कर मिल ही जाता है
- जुगाड़ कर लेना।
- सकल तीर्थ कर आई तुमड़िया तौ भी न गयी तिताई
- स्वाभाव नहीं बदलता।
- सखी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब
- लटका कर रखने वाले से तुरन्त इंकार कर देने वाला अच्छा।
- सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हँसता आय
- सच्चा दुखी, झूठा सुखी।
- सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता
- गलती सुधर जाए तो दोष नहीं कहलाता।
- समय पाइ तरुवर फले केतिक सीखे नीर
- काम अपने समय पर ही होता है।
- समरथ को नहिं दोष गोसाई
- समर्थ आदमी का दोष नहीं देखा जाता।
- ससुराल सुख की सार जो रहे दिना दो चार
- रिश्तेदारी में दो चार दिन ठहरना ही अच्छा होता है।
- सहज पके सो मीठा होय
- धैर्य से किया गया काम सुखकर होता है।
- साँच को आँच नहीं
- सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता।
- साँप के मुँह में छछूँदर
- कहावत दुविधा में पड़ना।
- साँप निकलने पर लकीर पीटना
- अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है।
- सारी उम्र भाड़ ही झोंका
- कुछ भी न सीख पाना।
- सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है
- जाँच के लिए थोड़ा-सा नमूना ले लिया जाता है।
- सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है
- परिस्थिति को न समझना।
- सावन हरे न भादों सूखे
- सदा एक सी दशा।
- सिंह के वंश में उपजा स्यार
- बहादुरों की कायर सन्तान।
- सिर फिरना
- उल्टी-सीधी बातें करना।
- सीधे का मुँह कुत्ता चाटे
- सीधेपन का लोग अनुचित लाभ उठाते हैं।
- सुनते-सुनते कान पकना
- बार-बार सुनकर तंग आ जाना।
- सूत न कपास जुलाहे से लठालठी
- अकारण विवाद।
- सूरज धूल डालने से नहीं छिपता
- गुण नहीं छिपता।
- सूरदास की काली कमरी चढ़े न दूजो रंग
- स्वभाव नहीं बदलता।
- सेर को सवा सेर
- बढ़कर टक्कर देना।
- सौ दिन चोर के, एक दिन साहूकार का
- चोरी एक न एक दिन खुल ही जाती है।
- सौ सुनार की एक लोहार की
- सुनार की हथौड़ी के सौ मार से भी अधिक लुहार के घन का एक मार होता है।
- हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है
- गरज पर सबको झुकना पड़ता है।
- हथेली पर दही नहीं जमता
- कार्य होने में समय लगता है।
- हड्डी खाना आसान पर पचाना मुश्किल
- रिश्वत कभी न कभी पकड़ी ही जाती है।
- हर मर्ज की दवा होती है
- हर बात का उपाय है।
- हराम की कमाई हराम में गँवाई
- बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जाता है।
- हवन करते हाथ जलना
- भलाई के बदले कष्ट पाना।
- हल्दी लगे न फिटकरी रंग आए चोखा
- बिना कुछ खर्च किए काम बनाना।
- हाथ सुमरनी पेट/बगल कतरनी
- ऊपर से अच्छा भीतर से बुरा।
- हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़ेे लिखे को फारसी क्या
- प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं।
- हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और
- भीतर और बाहर में अंतर होना।
- हाथी निकल गया दुम रह गई
- थोड़ेे से के लिए काम अटकना।
- हिजड़े के घर बेटा होना
- असंभव बात।
- हीरे की परख जौहरी जानता है
- गुणवान ही गुणी को पहचान सकता है।
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात
- अच्छे गुण आरम्भ में ही दिखाई देने लगते हैं।
- होनी हो सो होय
- जो होनहार है, वह होगा ही।
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