91वें संविधान संशोधन से लेकर 93वें संविधान संशोधन तक, भारतीय संविधान के संशोधन
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91वें संविधान संशोधन से लेकर 93वें संविधान संशोधन तक |
भारतीय संविधान के संशोधन भाग-4
(91वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 2003
· संविधान के अनुच्छेद 75 में धारा (1) के बाद निम्नलिखित धाराएँ जोड़ी जाए, जो कि इस प्रकार है:
· "(1ए) मंत्रीपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या सदन के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
· (1बी) संसद के किसी भी सदन का सदस्य जो कि किसी भी राजानीतिक दल से संबद्ध हो तथा उसे दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अंतर्गत उस सदन का सदस्य बनने के अयोग्य घोषित कर दिया हो, वह धारा (1) के तहत मंत्री के पद पर नियुक्ति के लिए भी अयोग्य माना जाएगा और यह अवधि उसे अयोग्य घोषित किए जाने की तारीख से शुरू होगी और उस तारीख तक लागू रहेगी जिस अवधि तक उसका सदस्य के रूप में कार्यकाल समाप्त नहीं होता या उस अवधि के समाप्त होने से पहले उस तारीख तक, जब वह कहीं से संसद के किसी भी सदन के लिए हुए चुनाव में खड़ा हुआ हो, और उसे निर्वाचित घोषित किया गया हो, जो भी पहले हो"।
· संविधान के अनुच्छेद 164 में धारा (1) के बाद निम्नलिखित धाराएं जोड़ी जाएं:
· "(1ए) राज्य में मंत्रीपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रीयों की कुल संख्या राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए:
· बशर्ते राज्य में मंत्रीयों की कुल संख्या मुख्यमंत्री सहित 12 से कम नहीं हो:
· बशर्ते जहाँ किसी राज्य में मंत्रीपरिषद में मंत्रीयों की कुल संख्या मुख्यमंत्री सहित संविधान (91वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 लागू होने की तारीख को उपरोक्त 15 प्रतिशत या पहले उपखंड में निर्दिष्ट संख्या से ज्यादा हो, जैसा भी मामला हो, तब उस राज्य में मंत्रीयों की कुल संख्या को इस धारा के प्रावधानों के मुताबिक निर्धारित करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा इस बारे में सार्वजनिक अधिसूचना जारी करने की तारीख के छह महीने के भीतर इस धारा के प्रावधानों का पालन किया जाए।
· (1बी) राज्य विधानसभा या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन, जहाँ विधानपरिषद हो, का सदस्य जो किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध हो तथा जिसे दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के तहत उस सदन का सदस्य बनने के अयोग्य घोषित कर दिया गया हो, धारा (1) के तहत उसे मंत्री पद पर नियुक्ति के लिए भी अयोग्य माना जाएगा तथा वह अवधि उसे अयोग्य घोषित किए जाने की तारीख से उस तारीख तक जारी रहेगी जब तक उसकी उस सदस्य के रूप में नियुक्ति की अवधि समाप्त नहीं हो जाती या उस अवधि के समाप्त होने से पहले, उस तारीख से, जब वह राज्य विधानसभा या विधानमंडल के किसी भी सदन के लिए चुनाव लड़े, जहाँ विधानपरिषद हो, जैसा भी मामला हो, उसे निर्वाचित घोषित किया जाए, जो भी पहले हो।"
· संविधान के अनुच्छेद 361ए के बाद निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ा जाए, जो इस प्रकार है:
· "261बी- किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध सदन का सदस्य जिसे दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अंतर्गत सदन की सदस्यता के अयोग्य घोषित किया गया हो, वह उस अवधि में किसी लाभकारी राजनीतिक पद के लिए भी अयोग्य माना जाएगा। उसे अयोग्य घोषित किए जाने की तारीख से तब तक के लिए, जब तक उसकी सदस्य के रूप में नियुक्ति की अवधि समाप्त नहीं हो जाती या उस तारीख तक, जब वह सदन के लिए कोई चुनाव लड़े और निर्वाचित घोषित किया जाए, जो भी पहले हो।"
· व्याख्या इस अनुच्छेद के उद्देश्य से-
· (ए) "सदन" का अर्थ वही समझा जाएगा जो दसवीं अनुसूची के पैरा 1 की धारा (ए) में दिया गया हैं। (बी) शब्द "लाभकारी राजनीतिक पद" से तात्पर्य किसी कार्यालय में (I) भारत सरकार या राज्य सरकार के तहत, जहाँ ऐसे कार्यालय में वेतन या पारिश्रमिक भारत सरकार या राज्य सरकार के सार्वजनिक राजस्व से दिया जाता हो, जैसा भी मामला हो, या (II) ऐसा संकाय, जो निगमित हो या नहीं, पूरी तरह या आंशिक रूप से भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन हो तथा ऐसे कार्यालय का वेतन या परिश्रमिक ऐसे संकाय द्वारा दिया जाता है, ऐसे मामलों को छोड़कर जहाँ ऐसा वेतन या पारिश्रमिक प्रतिपूरक के रूप में दिया जाता हो।
· संविधान की दसवीं अनुसूची में (ए) पैरा 1 में धारा बी में शब्दों तथा संख्या को "पैरा 3 या, जैसा भी मामला हो, हटा दिया जाए;" (बी) पैरा 2 के उप-पैरा (1) में शब्दों तथा संख्या "पैरा 3, 4 तथा 5", के स्थान पर "पैरा 4 तथा 5; लिखा जाए" (सी) पैरा 3 को हटा दिया जाए।
(92वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 2003
· भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
· संविधान की आठवीं अनुसूची में-
· (ए) वर्तमान प्रविष्टि 3 को प्रविष्टि 5 किया जाए तथा प्रविष्टि 5 से पहले निम्नलिखित प्रविष्टि जोड़ी जाएँ:
"3 बोडी; 4 डोगरी"।
· (बी) वर्तमान 4 से 7 तक की प्रविष्टि को क्रमश: प्रविष्टि 6 से 9 लिखा जाए;
· (सी) वर्तमान प्रविष्टि 8 के स्थान पर प्रविष्टि 11 लिखा जाए तथा प्रविष्टि 11 से पहले निम्नलिखित प्रविष्टि को जोड़ा जाए:
· "10 मैथिली;
· (डी) वर्तमान 9 से 14 तक की प्रविष्टि के स्थान पर क्रमश: 12 से 17 लिखा जाए;
· (ई) वर्तमान प्रविष्टि 15 की जगह प्रविष्टि 19 लिखा जाए और प्रविष्टि 19 से पहले निम्नलिखित प्रविष्टि जोड़ी जाए:
· "18 संथाली;
· (एफ) वर्तमान प्रविष्टि 16 से 18 के स्थान पर क्रमश: प्रविष्टि 20 से 22 लिखा जाए।
(93वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 2006
· भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
· बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्रों और सामाजिक तथा शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए अन्य वर्गों के नागरिकों के लिए व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा प्राप्त करना एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
· शिक्षा संस्थानों में, अनुसूचित जाति और जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा (4) के प्रवधानों के तहत की गई है।
· इस समय सहायता प्राप्त अथवा प्रशासन द्वारा संचालित संस्थानों में विशेष तौर पर व्यावसायिक शिक्षा के लिए जो सीटें उपलब्ध हैं वे गैर सहायता प्राप्त निजी संस्थानों की तुलना में सीमित हैं।
· संविधान के अनुच्छेद 30 की धारा (1) के प्रावधानों के तहत सभी अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उसे संचालित करने का अधिकार है।
· अल्पसंख्यक वर्गों को संस्थानों की स्थापना और उसके संचालन के बारे में जो अधिकार मिले हुए हैं, उनकी रक्षा करना आवश्यक है।
· इसके फलस्वरूप जिन संस्थानों को सरकार ने अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है, उन्हें इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
· सामाजिक और शिक्षा के स्तर पर पिछड़े हुए वर्गों के नागरिकों, अर्थात अनुसूचित जाति व जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों के छात्रों को, अनुच्छेद 30 की धारा (1) के तहत आने वाले अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर बाकी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में दाखिला देने के मामले में अनुच्छेद 15 के प्रावधानों का विस्तार किया गया है।
अनुच्छेद 15 की नयी धारा (5) के तहत संसद तथा राज्यों की विधायिकाएँ ऊपर दिए गए उद्देश्य के लिए समुचित क़ानून बना सकती हैं।
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