31वें संविधान संशोधन से लेकर 60वें संविधान संशोधन तक, भारतीय संविधान के संशोधन

31वें संविधान संशोधन से लेकर 60वें संविधान संशोधन तक

भारतीय संविधान के संशोधन भाग-2
(31वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1973
· इस अधिनियम द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व की अधिकतम संख्या 500 से बढ़कर 525 तथा केंद्रशासित प्रदेशों के सदस्यों की अधिकतम संख्या को 25 से घटाकर 20 किया गया।
(32वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1973
· इस अधिनियम द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करने वाले उपबंध को लागू करने के लिए आवश्यक संवैधानिक प्राधिकारी की व्यवस्था की गई और लोक सेवाओं से संबंधित शिकायतों की सुनवाई की अधिकारिता का एक प्रशासनिक न्यायाधिकरण गठित किया गया।
· इसके द्वारा संसद को यह शक्ति भी दी गई कि वह उस राज्य में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए कानून बना सकती है।
(33वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1974
· इस संशोधन द्वारा संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडलों से त्यागपत्र दिए जाने की प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए अनुच्छेद 101 तथा 120 में संशोधन किया गया।
· संशोधन अनुच्छेद में यह उपबंधित है कि संसद और राज्य-विधानमण्डलों के सदस्यों द्वारा दिये गये त्यागपत्र को अध्यक्ष (स्पीकर) तभी स्वीकार करेगा यदि उसे इस बात का समाधान हो जाए कि त्यागपत्र स्वेच्छा से दिया गया है।
· यदि उसे विश्वास हो जाए कि त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं है या धमकी के कारण दिया गया है तो वह उसे स्वीकार नहीं करेगा।
· मूल अनुच्छेद के अनुसार ऐसे त्यागपत्र अध्यक्ष (स्पीकर) को दिये जाने पर स्वतरू प्रभावी हो जाते थे।
(34वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1974
· इस अधिनियम द्वारा विभिन्न राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार क़ानूनों को नौंवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
· इन अधिनियमों को मिलाकर नवम अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 86 हो गई है।
(35वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1974
· इस अधिनियम द्वारा एक नया अनुच्छेद 2 (क) जोड़ा गया, जिसके द्वारा सिक्किम को भारतीय संघ के सह-राज्य का दर्जा दिया गया। अनुच्छेद 80-81 में परिणामिक संशोधन किए गए। एक नई अनुसूची, अर्थात् 10वीं अनुसूची जोड़ी गई जिसमें सिक्किम के भारतीय संघ में शामिल होने की शर्तें दी गई।
(36वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1975
· सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण सदस्य बनाने और संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल करने और सिक्किम को राज्यसभा और लोकसभा में एक-एक स्थान देने के लिए यह अधिनियम बनाया गया।
· संविधान (35वां संशोधन) अधिनियम द्वारा जोड़े गए अनुच्छेद 2(क) और 10वीं अनुसूची को हटाकर अनुच्छेद 80 और 81 का यथाचित संशोधन किया गया।
· संशोधन के परिणामस्वरूप सिक्किम में राजतंत्र की समाप्ति कर लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना की गई है।
(37वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1975
· इस अधिनियम द्वारा केंद्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा की व्यवस्था की गई, संविधान के अनुच्छेद 240 का भी संशोधन किया गया और यह उपबंध किया गया कि विधानमंडल वाले अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तरह केंद्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश के लिए विनियम बनाने की राष्ट्रपति की शक्ति का प्रयोग तब किया जा सकेगा, जब विधानसभा या तो भंग हो गई हो या उसके कार्य निलंबित हों।
(38वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1975
· इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 123, 213 और 352 में संशोधन करके यह उपबंध किया गया कि इन अनुच्छेदों में उल्लिखित राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक निर्णय को किसी न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी।
(39वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1975
· इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर ऐसे प्राधिकारी द्वारा विचार किया जा सकेगा, जो संसदीय क़ानून द्वारा नियुक्त किया जाए।
· इस अधिनियम द्वारा नौवीं अनुसूची में कतिपय केंद्रीय क़ानूनों को भी शामिल किया गया।
(40वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1976
· इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महासागरीय सीमा अथवा पूरी तरह भारत के आर्थिक क्षेत्र में आने वाली सभी खानों, खनिज पदार्थों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं को संघ के अधिकार में निहित करने का उपबंध किया गया।
· इसमें इस बात का भी उपबंध किया गया कि भारत के आर्थिक क्षेत्र के सभी अन्य संसाधन भी पूरी तरह संघ के अधिकार में होंगे।
· इस अधिनियम द्वारा इस बात का भी उपबंध किया गया कि राष्ट्रीय जल सीमा देश के भू-भाग और भारत की आर्थिक क्षेत्र की सीमाएं पूरी तरह विनिर्दिष्ट होंगी, जो समय-समय पर संसद अथवा संसद द्वारा निर्मित क़ानून के अधीन निर्धारित की जाएंगी।
· साथ ही साथ, नौवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियम जोड़े गए।
(41वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1976
· इस अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 316 में संशोधन करके राज्य लोक सेवा और संयुक्त लोक सेवा आयोगों के सदस्यों की सेवा-निवृत्ति की आयु को 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दिया गया।
(42वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1976
· इस अधिनियम द्वारा संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए।
· ये संशोधन मुख्यत: स्वर्णसिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए थे।
· कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्र की अखंडता के उच्चादर्शों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने, नीति निर्देशक सिद्धांतों को अधिक व्यापक बनाने और उन्हें उन मूल अधिकारों, जिनकी आड़ लेकर सामाजिक-आर्थिक सुधारों को निष्फल बनाया जाता रहा है, पर वरीयता देने के उद्देश्य से किए गए।
· इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के संबंध में एक नया अध्याय जोड़ा गया और समाज विरोधी गतिविधियों से चाहे वे व्यक्तियों द्वारा हों या संस्थाओं द्वारा, निपटने के लिए विशेष उपबंध किए गए।
· कानूनों की संवैधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय लेने के लिए न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या निर्धारित करने तथा किसी क़ानून को संवैधानिक दृष्टि से अवैध घोषित करने के लिए कम-से-कम दो तिहाई न्यायाधीशों की विशेष बहुमत व्यवस्था करके न्यायापालिका संबंधी उपबंधों का भी संशोधन किया गया।
· उच्च न्यायालयों में अनिर्णित मामलों की बढ़ती हुई संख्या को कम करने के लिए और सेवा, राजस्व, सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रगति के संदर्भ में कतिपय अन्य मामलों के शीघ्र निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को सुरक्षित रखते हुए प्रशासनिक और अन्य न्यायाधिकरणों के गठन के लिए उपबंध किया गया।
· अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार क्षेत्र में भी कुछ संशोधन किया गया।
(43वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1977
· इस अधिनियम के द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ, संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 के लागू होने से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में जो कटौती हो गई थी, उसे बहाल करने का उपबंध किया गया और तदनुसार उक्त संशोधन द्वारा संविधान में शामिल किए गए अनुच्छेद 32क, 131क, 144क, 226क, और 228क को इस अधिनियम द्वारा हटा दिया गया।
· इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 31घ को भी, जिसके द्वारा राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के कतिपय क़ानून बनाने के लिए संसद को विशेष शक्तियाँ दी गई थीं, हटा दिया गया।
(44वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1978
· संपति के अधिकार को, जिसके कारण संविधान में कई संशोधन करने पड़े, मूल अधिकार के रूप में हटाकर केवल विधिक अधिकार बना दिया गया।
· फिर भी यह सुनिश्चित किया गया कि संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटाने से अल्पसंख्यकों के अपनी पसंद के शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और संचालन संबंधी अधिकारों पर कोई प्रभाव न पड़े।
· संविधान के अनुच्छेद 352 का संशोधन करके यह उपबंध किया गया कि आपात स्थिति की घोषणा के लिए एक कारण ‘सशस्त्र विद्रोह' होगा।
· आंतरिक गड़बड़ी, यदि यह सशस्त्र विद्रोह नहीं है तो आपात स्थिति की घोषणा के लिए आधार नहीं होगा।
· व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को जैसा कि अनुच्छेद 21 और 22 में दिया गया है, इस उपबंध द्वारा और अधिक शक्तिशाली बनाया गया है।
· इसके अनुसार निवारक नजरबंदी नहीं रखा जा सकता, जब तक कि सलाहकार बोर्ड यह रिपोर्ट नहीं देता कि ऐसी नजरबंदी के पर्याप्त कारण हैं।
· इसके लिए अतिरिक्त संरक्षण की व्यवस्था इस अपेक्षा से की गई कि सलाहकार बोर्ड का अध्यक्ष किसी समुचित उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और बोर्ड का गठन उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशों के अनुसार किया जाएगा।
(45वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1980
· यह अधिनियम संसद तथा राज्य विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और आंग्ल भारतीयों के लिए स्थानों के आरक्षण संबंधी व्यवस्था को 10 वर्षों की अवधि के लिए और बढ़ाने के उद्देश्य से पारित किया गया।
(46वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1982
· द्वारा अनुच्छेद 269 का संशोधन किया गया, ताकि अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के दौरान भेजे जाने वाले सामान पर लगाया गया कर राज्यों को सौंप दिया जाए।
· इस अनुच्छेद का संशोधन इस दृष्टि से भी किया गया, ताकि संसद क़ानून द्वारा यह निर्धारित कर सके कि किस स्थिति में भेजा जाने वाला माल अंतर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान भेजा हुआ माना जाएगा।
· संघ सूची में एक नई प्रविष्ट 92ख भी शामिल की गई, ताकि ऐसी स्थिति में जब माल अंतर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान भेजा जाए तो उस माल पर कर लगाया जा सके।
· अनुच्छेद 286 के खंड 3 का संशोधन किया गया, ताकि संसद क़ानून द्वारा कार्य-संविदा के निष्पादन के दौरान वस्तुओं के हस्तांतरण में, किराया-ख़रीद अथवा किस्तों में अदायगी के आधार पर माल की सुपुर्दगी पर कर लगाने की प्रणाली, दरों और अन्य बातों के संबंध में प्रतिबंध और शर्तें विनिर्दिष्ट कर सकें।
· 'माल के क्रय और विक्रय पर कर' की परिभाषा में यह जोड़ने के लिए अनुच्छेद 366 का यथोचित संशोधन किया गया कि उसमें नियंत्रित वस्तुओं के प्रतिफलार्थ अंतरण, कार्य-संविदा के निष्पादन से संबंधित वस्तुओं के रूप में संपत्ति का अंतरण, किराया-ख़रीद अथवा किस्तों में अदायगी आदि की प्रणाली में माल की सुपुर्दगी को भी शामिल किया जा सकें।
(47वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1984
· इस संशोधन का उद्देश्य संविधान की नवम अनुसूची में कतिपय भूमि सुधार अधिनियमों को शामिल करना है, ताकि उन अधिनियमों को लागू किए जाने में रुकावट डालने वाली मुकदमेबाजी को रोका जा सके।
(48वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1984
· संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन पंजाब राज्य के बारे में राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई उद्घोषणा तब तक एक वर्ष से अधिक समय तक लागू नहीं रह सकती, जब तक कि उक्त अनुच्छेद के खंड 5 में उल्लिखित शर्त पूरी नहीं होती।
· चूंकि यह महसूस किया गया है कि उक्त उद्घोषणा का लागू रहना आवश्यक है, इसलिए यह संशोधन किया गया है, ताकि इस मामले में अनुच्छेद 356 के खंड 5 में उल्लिखित शर्तें लागू न होने पाएं।
(49वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1984
· त्रिपुरा सरकार ने सिफारिश की थी कि संविधान की छठी अनुसूची के उपबंधों को उस राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में लागू किया जाए।
· इस अधिनियम द्वारा किए गए संशोधन का उद्देश्य उस में काम कर रही स्वायत्तशासी जिला परिषद को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना है।
(50वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1984
· संविधान के अनुच्छेद 33 द्वारा संसद को यह निर्धारित करने के लिए क़ानून बनाने की शक्ति दी गई है कि संविधान के भाग 3 द्वारा प्रदत्त किसी अधिकारी को सशस्त्र सेनाओं अथवा लोक-व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रभावित बलों पर लागू करने में किस सीमा तक प्रतिबंधित अथवा निराकृत किया जाए, ताकि उनके द्वारा कर्तव्यों के उचित निर्वहन और उनमें अनुशासन बनाए रखने को सुनिश्चित किया जा सके।
· अनुच्छेद 33 की परिधि में निम्नलिखित बातों को लाने के लिए इसका संशोधन प्रस्तावित है-
1. राज्य की अथवा उसके प्रभार या कब्जे में संपत्ति के संरक्षण के लिए प्रभारित बलों के सदस्य, अथवा
2. आसूचना अथवा प्रति-आसूचना के प्रयोजन के लिए राज्य द्वारा स्थापित ब्यूरों अथवा अन्य संगठनों में नियुक्त व्यक्ति, अथवा
3. किसी बल, ब्यूरो अथवा संगठन के प्रयोजन के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में नियुक्त अथवा उनसे संबंधित व्यक्ति।
· अनुभव से पता चला है कि इनके द्वारा कर्तव्यों के उचित निर्वहन तथा उनमें अनुशासन बनाए रखने को सुनिश्चित्त करने की आवश्यकता राष्ट्रीय हित में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
(51वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1984
· इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 330 में संशोधन किया गया, ताकि मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की अनुसूचित जनजातियों के लिए संसद में स्थान आरक्षित किए जा सकें।
· साथ ही साथ, स्थानीय जनजातियों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अनुच्छेद 332 में संशोधन करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में भी इसी तरह का आरक्षण किया गया।
(52वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1985
· इस संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि यदि संसद-सदस्य या विधानसभा-सदस्य दल-बदल करता है या दल द्वारा निकाल दिया जाता है, जिसने उसे चुनाव में खड़ा किया था, या कोई निर्दलीय उम्मीदवार जो चुने जाने के छह महीने के अंदर किसी राजनीतिक दल का सदस्य बन जाता है, वह सदन का सदस्य होने के अयोग्य करार दिया जाएगा।
· इस अधिनियम में राजनीतिक दलों के विभाजन तथा विलय के संबंध में समुचित प्रावधान है।
(53वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1986
· यह भारत सरकार और मिजोरम सरकार द्वारा मिजोरम नेशनल फ्रंट के साथ 30 जून 1986 को हुए मिजोरम समझौते को लागू करने के लिए बनाया गया है।
· इसके लिए नया अनुच्छेद 371-G संविधान में जोड़ा गया है, जिसमें अन्य बातों के अलावा, मिजो लोगों के धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों, परंपरागत क़ानून और विधि के संबंध में संसद द्वारा क़ानून बनाने की मनाही दीवानी तथा फौजदारी संबंधी मामलों, जिन पर मिजो लोगों के परंपरागत क़ानून के अनुसार निर्णय लिया जाता है तथा जमीन के स्वामित्व और हस्तांतरण के बारे में भी तब तक संसदीय क़ानून लागू नहीं होगा जब तक मिजोरम की विधानसभा इसे मंजूरी नहीं दे देती। लेकिन यह धारा मिजोरम राज्य में संशोधन के जारी होने से पहले से लागू होने वाले केंद्रीय क़ानूनों पर लागू नहीं होगी।
· नई धारा में यह भी व्यवस्था है कि मिजोरम विधानसभा में कम-से-कम 40 सदस्य होंगे।
(54वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1986
· इस अधिनियम द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन को निम्न प्रकार से बढ़ाया गया है-
1. भारत के मुख्य न्यायाधीश 10,000 रुपये प्रतिमाह
2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 9,000 रुपये प्रतिमाह
3. उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश 9,000 रुपये प्रतिमाह
4. उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 8,000 रुपये प्रतिमाह
· इस अधिनियम द्वारा द्वितीय अनुसूची के भाग श्घश् में संशोधन करके वेतन को उपर्युक्त प्रकार से बढ़ाया गया है तथा अनुच्छेद 125 एवं 221 में यह प्रावधान रखा गया है कि संसद कानून बनाकर भविष्य में न्यायाधीशों के वेतन में सुधार कर सकती है।
(55वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1986
· इसमें केंद्रशासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दिए जाने के भारत सरकार के प्रस्ताव को लागू किया गया है।
· इसके लिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 371-एच जोड़ा गया है।
· अन्य बातों के अलावा, इस अनुच्छेद में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को प्रदेश की अत्यंत नाजुक स्थिति के कारण क़ानून और व्यवस्था के क्षेत्र में विशेष जिम्मेदारी सौंपी गई है।
· इसके अनुसार अपने दायित्वों को पूरा करने में राज्यपाल मंत्रिपरिषद में सलाह-मशविरा करके की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपना व्यक्तिगत निर्णय ले सकेंगे।
· यदि राष्ट्रपति चाहे तो राज्यपाल की यह जिम्मेदारी खत्म की जा सकेगी।
· नए अनुच्छेद के अनुसार यह भी व्यवस्था की गई है कि अरुणाचल प्रदेश राज्य की विधानसभा में 30 से कम सदस्य नहीं होंगे।
(56वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1987
· भारत सरकार के केंद्रशासित प्रदेश गोवा, दमन व दीव के गोवा जिले में शामिल क्षेत्र को गोवा राज्य के रूप में तथा उसी केंद्रशासित प्रदेश के दमन व दीव में शामिल क्षेत्र को दमन व दीव नामक एक नए केंद्रशासित प्रदेश के रुप में गठन का प्रस्ताव किया है।
· इस संदर्भ में यह प्रस्तावित किया गया कि नए राज्य गोवा की विधानसभा में 40 सदस्य होंगे।
· केंद्रशासित प्रदेश गोवा, दमन व दीव की मौजूदा विधानसभा में 30 निर्वाचित सदस्य हैं तथा तीन मनोनीत सदस्य हैं।
· ऐसा विचार किया गया कि जब तक मौजूदा विधानसभा की पांच वर्ष की अवधि समाप्त होकर नए निर्वाचन न कर लिए जाएं, तब तक गोवा राज्य के लिए बनी नई विधानसभा में दमन व दीव का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्यों को शामिल न किया जाए।
· अतएव, नए राज्य गोवा को ऐसी विधानसभा देने का निश्चय किया गया, जिसमें 30 से कम सदस्य न हों।
· इस संशोधन ने उक्त प्रस्ताव को प्रभावी बनाने के लिए अपेक्षित विशेष प्रावधान को प्रभावी बनाया।
(57वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1987
· संविधान (51 संशोधन) अधिनियम, 1984 लोकसभा में नागालैंड, मेघालय, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने तथा संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 को समुचित प्रकार से संशोधित करके नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
· यद्यपि ये क्षेत्र जनजाति-बहुल हैं, तथापि इस संशोधन का उद्देश्य यह था कि इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियाँ अपना न्यूनतम प्रतिनिधित्व तो कर ही सकें, क्योंकि वे विकसित वर्ग के लोगों के साथ चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं।
· यद्यपि संविधान (51 संशोधन) अधिनियम औपचारिक रूप से प्रभावी था, फिर भी यह पूरी तरह से तब तक लागू नहीं हो सकता था, जब तक यह निर्धारित न हो जाए कि इन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के लिए किन-किन स्थानों का आरक्षण करना है।
· किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 332 के अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 332(3) के प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही निर्धारित किया जाता है, किंतु उत्तर-पूर्वी राज्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, इन राज्यों की अनुसूचित जनजातियों के विकास व अन्य संबंधित बातों पर विचार करके यह जरूरी समझा गया कि इन क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किए जाएँ, ताकि ये लोग भी, जैसा कि संविधान में संकल्पना की गई है, सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
· संविधान के अनुच्छेद 332 को अस्थाई प्रावधान बनाने के लिए फिर से संशोधित किया गया, जिससे अनुच्छेद 170 के अंतर्गत वर्ष 2000 के बाद पहली जनगणना के आधार पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण का पून: निर्धारण किया जा सके।
· इस संशोधन में यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि ऐसे राज्यों की विधानसभाओं (जो संशोधित अधिनियम के लागू होने की तिथि पर अस्तित्व में थीं) में सभी स्थान अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अधिग्रहीत किए गए हों, तो एक को छोड़कर सभी स्थान अनुसूचित जनजातीयों के लिए आरक्षित किए जाएँ तथा अन्य किसी मामले में जहाँ पर स्थानों की संख्या कुल संख्या के बराबर हो, एक ऐसा अनुपात हो जिसमें मौजूदा विधानसभा के सदस्यों की संख्या मौजूदा विधानसभा के कूल सदस्यों की संख्या के बराबर हो।
· यह अधिनियम इन उद्देश्यों को प्राप्त करता है।
(58वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम,1987
· हिन्दी में संविधान के प्राधिकृत पाठ की माँग सामान्यत: रही है।
· विधि प्रक्रिया में संविधान का आसानी से प्रयोग किया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि इसका हिन्दी पाठ भी प्राधिकृत हो।
· संविधान का कोई भी हिन्दी संस्करण न केवल संवैधानिक सभा द्वारा प्रकाशित हिन्दी अनुवाद के अनुरूप हो, बल्कि हिन्दी में केंद्रीय अधिनियमों के प्रधिकृत पाठों की भाषा, शैली व शब्दावली के भी अनुरूप हो।
· संविधान को संशोधित करके राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदत्त की गई है कि वह अपने प्राधिकार के तहत संविधान के हिन्दी अनुवाद को, जिस पर संवैधानिक सभा के सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर किए हुए हैं तथा जिनमें उन सभी परिवर्तनों को शामिल कर लिया गया है जिससे यह हिन्दी भाषा के केंद्रीय अधिनियमों के प्राधिकृत पाठों की भाषा, शैली व शब्दावली के अनुरूप हो, प्रकाशित करा सकें।
· राष्ट्रपति को यह शक्ति भी प्रदत्त की गई है कि वह संविधान में किए गए प्रत्येक अंग्रेजी संशोधन का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाएँ।
(59वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1988
· इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 (5) का संशोधन किया गया, जिससे कि अनुच्छेद 356 के खंड़ (1) के अधीन राष्ट्रपति की उद्घोषणा का एक की अवधि से आगे विस्तार किया जा सके और यदि आवश्यक हो तो पंजाब राज्य में अशांति की स्थिति बनी रहने के कारण अनुच्छेद 356 के खड़ (4) के अधीन यथा अनुज्ञेय तीन वर्ष की अवधि तक प्रभावी बनाया जा सके।
· इस अधिनियम द्वारा आपात स्थिति की उद्घोषणा से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 352 का, पंजाब राज्य में इसे लागू किए जाने की बाबत संशोधन किए जाने के परिणामस्वरूप, अनुच्छेद 358 और अनुच्छेद 359 का भी संशोधन किया गया है।
· पंजाब राज्य के संबंध में अनुच्छेद 352, 358 और 359 के संशोधन की तारीख 30 मार्च 1988 से जो इस संशोधन के प्रारंभ की तारीख है, दो वर्ष की अवधि के लिए ही प्रवर्तनीय रहेंगे।
(60वाँ संविधान संशोधन) अधिनियम, 1988
· अधिनियम, संविधान, के खंड (2) का इस दृष्टि से संशोधन करता है, जिससे कि वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर की अधिकतम सीमा को 250 रुपये प्रतिवर्ष से बढ़ाकर 2,500 रुपये प्रतिवर्ष किया जा सके।
· इस कर में वृद्धि करने से राज्यों को अतिरिक्त स्त्रोत जुटाने में सहायता मिलेगी।
· धारा (2) के उपबंध का लोप किया गया है।
COMMENTS