प्रागैतिहासिक काल आद्य ऐतिहासिक काल ऐतिहासिक काल

इस प्रकार ऐतिहासिक अध्ययन किसी समाज व देश की ‘संस्कृति’ व ‘सभ्यता’ का परिचय दिलाता है। अध्ययन की सुविधा के अनुसार
इतिहास को तीन कालों में बाँटा गया है:
1. प्रागैतिहासिक काल
2. आद्य ऐतिहासिक काल
3. ऐतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल:
ऐसा काल जिसमें मानव को कोई लिपि का ज्ञान नहीं था तथा जिसके जानकारी का प्रमुख आधार ‘पुरातत्व’ (Archology) है, उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं।
नोट:भारतीय इतिहास का ‘पाषाण काल’ एवं ताम्र पाषाण काल प्रागैतिहासिक काल के अन्तर्गत आता है।
प्रागैतिहासिक काल
v पाषाण काल
v ताम्र पाषाण काल
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पुरातत्व
मानव द्वारा प्रयोग किये गये ऐतिहासिक महत्व के बचे हुए
भौतिक अवशेषों को ‘पुरातत्व’
कहते हैं।
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आद्य ऐतिहासिक काल:
ऐसा काल जिसमें लिपि ज्ञान तो है, परन्तु पठनीय नहीं है, ‘आद्य ऐतिहासिक काल’ कहलाता है। ऐसे काल की जानकारी का अभी भी स्रोत ‘पुरातत्व’ ही माना जाता है।
नोट: भारतीय इतिहास का ‘सैंधव काल’ (सिन्धु घाटी की सभ्यता) ‘आद्य-ऐतिहासिक काल’ में आता है।
ऐतिहासिक काल:
पठनीय लिपि वाले काल को ऐतिहासिक काल कहते हैं, अर्थात् समस्त लिखित एवं पठनीय इतिहास।
नोट: वैदिक काल से ऐतिहासिक युग की शुरुआत मानी जाती है।
कुछ विशिष्ट तथ्य:
1. हेरोडेटस को इतिहास का पिता कहा जाता है। इन्होंने अपना विवरण ‘हिस्टोरिका’ नामक पुस्तक में लिखा है। इसमें 5वीं ई. पू. के भारत एवं फारस के संबंधों का विवरण है।
अन्य प्रमुख रचनाएँ:
·
पेरीप्लस
एरीथ्रियन सी’-अज्ञात रचनाकार
(80 ई.)
· नेचुरल
हिस्टोरिका-टिलनी (प्रथम शताब्दी)
·
भारत का भूगोल- टालमी (द्वितीय शताब्दी)
सिकन्दर के साथ आने वाले यूनानी लेखक-
नियार्कस, आर्नेसिक्रिट्स,
अरिस्तोबुलस।
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में सेल्युकस का राजदूत: ‘मेगस्थनीज’ राजदरबार में आया था। इसकी सर्वप्रमुख रचना ‘इण्डिका’ है।
भारत आने वाले चीनी यात्रियों का क्रम:
1. फाह्यान (399 से 414 ई.) फो-क्यू-की
(पुस्तक)
(चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ के शासनकाल में भारत आया)
2. संुगयन (518 ई.)
3. ह्वेनसांग (629-645 ई.) सी-यू-की
(पुस्तक) (हर्षवर्धन का राजाश्रय प्राप्त किया)
4. इत्सिंग (671 ई.)
5. मान्त्वान्-लिन (हर्ष का पूर्वी अभियान)
6. चाऊ-जू-कुआ (चोल कालीन इतिहास)
7. तिब्बती बौद्ध यात्री (लेखक) लामा तारानाथ ने अपने ग्रंथों कंग्यूर तथा
तंग्यूर में भारतीय इतिहास की जानकारी दी।
8. प्रसिद्ध अरब यात्री अलबरुनी (अबूरेहान) महमूद
गजनवी की सेना के साथ भारत आया था। इसने भारत संबंधी यात्रा-विवरण किताबुल-हिन्द
(तहकीक-ए-हिन्द) नामक पुस्तक लिखा।
9. वेनिस (इटली) का प्रसिद्ध यात्री ‘मार्कोपोलो’ पूरी दुनिया की
यात्रा के क्रम में 13वीं शताब्दी में दक्षिण भारत स्थित ‘पाण्ड्य राज्य’
(तमिल पान्डु) की यात्रा की और अपने वृतान्त में भारत के बारे में बताया।
पाषाण काल:
1. जिस काल का मानव पाषाण (पत्थर) के औजारों के माध्यम से अपना जीवन सरल बनाया, उसे पाषाण काल कहते हैं। भारत में मानव द्वारा
प्रयोग किये गये औजारों के विकास क्रम के आधार पाषाण काल को मुख्यतः तीन भागों में
विभाजित किया जाता है-
1. पुरापाषाण काल (Paleolithic Period)- 25 लाख ई. पू. - 10 हजार ई. पू.
2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period)- 10 हजार ई. पू. - 8 हजार ई. पू.
3. नव पाषाण काल (Neolithic Period)- 7 हजार ई. पू. - 1 हजार ई. पू.
नोट- (i) भारत में पाषाण
काल (प्रागैतिहासिक काल) को प्रकाश में लाने का श्रेय डा. प्राइमरोज को दिया जाता
है। इन्होंने 1842 ई. में कर्नाटक स्थित रायचूर जिले के लिंगसुगूर नामक स्थान
से प्रथम पाषाण उपकरण प्राप्त किये।
(ii) भारत
में मानव के रहने का प्रथम साक्ष्य, तमिलनाडु स्थित चेन्नई (मद्रास) के पलवरम् नामक स्थान
(कोर्तलयार नदी घाटी) से प्राप्त हुआ। यह साक्ष्य 1863 ई. में अंग्रेज भू-वैज्ञानिक राॅबर्ट ब्रूश फूट ने खोजा।
(iii) भारत में मानव नर
कंकाल महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
पुरापाषाण काल:
भारत में पुरापाषाण कालीन अवशेष भारतीय महाद्वीप में सोहन
नदी घाटी (पाकिस्तान), बेलन नदी घाटी
(उ. प्र.), नर्मदा नदी घाटी (म.
प्र.) एवं कोर्तलयार नदी घाटी (सुदूर दक्षिण भारत) से प्राप्त हुए है। पुरापाषाण
कालीन प्रमुख उपकरण एवं औजार, चापर-चापिंग,
हैण्ड-एक्स, क्लीवर एवं स्क्रैपर थे।
·
चापर-चापिंग संस्कृति-सोहन नदी घाटी
·
चापर: पत्थर का
एक ऐसा टुकड़ा जिस पर एक ओर धार
·
चापिंग: पत्थर के
टुकड़े के दोनों ओर धार
·
हैण्ड-एक्स (हस्तकुठार): एक ओर धार और अंत में मूठ।
·
क्लीवर: पत्थर के
पतले-टुकड़े के दोनों ओर धार
·
स्क्रैपर: खुरचनी
1. आग के बारे में
जानकारी सर्वप्रथम इसी काल के उत्तरवर्ती चरण में हुई, क्योंकि ‘दीपक’ (Lamp) की जानकारी प्राप्त हुई है।
2. विश्व में मानव
निवास के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य अफ्रीकी महाद्वीप से 25 लाख वर्ष पुराना पाया गया।
3. भारत में मानव
निवास के प्राचीनतम् साक्ष्य महाराष्ट्र के ‘बोरी’
नामक स्थल से प्राप्त किया गया। यह साक्ष्य
लगभग 14 लाख वर्ष पुराना माना जाता
है।
4. भारत में
पुरापाषाण कालीन मानव की खोपड़ी का प्रथम साक्ष्य हथनोरा नामक स्थान (मध्य प्रदेश-हौसंगाबाद जिला) से 1982 ई. में प्राप्त
किया गया।
5. भारत में
चित्रकला के प्राचीनतम् साक्ष्य इसी काल से प्राप्त होने लगे। चित्रकला का
प्राचीनतम् साक्ष्य उ0प्र0 के मिर्जापुर जिले के लखनिया दरी से प्राप्त
हुआ है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबैठका एवं आदमगढ़ नामक
स्थान से भी चित्रकला के साक्ष्य इसी युग के साक्ष्य मिले हैं।
6. उत्तर प्रदेश के
मिर्जापुर जिले में स्थित लोहदा नाला क्षेत्र से हड्डी के बने उपकरण एवं मातृदेवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
मध्यपाषाण काल:
मध्य पाषाण काल, पुरापाषाण काल की उत्तरवर्ती अवस्था है। इस काल के औजार सूक्ष्म एवं नुकीले
बनाये गये, इसलिये इनको ‘माइक्रोलिथिक’ पाषाण उपकरण भी
कहा गया है। इस काल प्रमुख औजारों में धनुष-बाण, बरछे, भाले एवं हसियां
थे।
1. भारत में सर्वप्रथम बार लघुपाषाणोपकरण (Microlithic) 1867 ई. में सी.एल. कार्लाइल ने विन्ध्य क्षेत्र से खोजा।
2. मध्य पाषाण काल के सर्वप्रमुख स्थलों में लंघनाज (गुजरात), बागोर (राजस्थान), आदमगढ़ (मध्य प्रदेश), सरायनाहर (उ0प्र0-प्रतापगढ़), महदहा (उ0प्र0-प्रतापगढ़), वीरभानपुर (पं. बंगाल) आदि है।
3. इस काल के लोग भी कृषि कार्य से अनभिज्ञ थे, परन्तु यह लोग छोटे-छोटे जानवरों- मछली, भेड़, बकरी, कुत्ता एवं घड़ियाल आदि के
बारे में जानकार हो गये अर्थात् पशुपालन प्रारम्भ हो गया।
नोट: भारत में पशुपालन का सबसे प्राचीनतम् साक्ष्य-बागोर एवं आदमगढ़ से प्राप्त हुआ है। इसके अलावा बागोर भारत
का सबसे बड़ा मध्यपाषाणिक स्थल है।
4. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिलें में स्थित सरायनाहर नामक स्थल से हड्डी एवं
सींग निर्मित उपकरण, 11 शवाधान, आठ भट्टियों के साक्ष्य मिलें है, साथ ही साथ गोलाकार फर्श एवं स्तम्भ-गर्त के
साक्ष्य भी मिले हैं। इसी प्रकार महदहा नाम स्थल से स्तम्भ-गर्त के साथ-साथ,
मृग-श्रृंग के छल्लों की माला भी प्राप्त हुई
है।
5. लंघनाज (गुजरात) से 14 मानव कंकाल तथा
जली हुई हड्डियों के साक्ष्य मिले हैं अर्थात् यहाँ के
लोग अपने मृतकों को जलाते भी थे।
नवपाषाण काल:
मानव जिस युग में प्राकृतिक तत्वों पर विजय प्राप्त कर
पशुपालन के साथ-साथ कृषि कार्य प्रारम्भ कर स्थिर जीवन का विकास प्रारम्भ किया उसे
नवपाषाण काल (Neolithic period) कहते हैं। प्रसिद्ध विद्वान वार्टिक माइल्स के
अनुसार नवपाषाणिक संस्कृति की अग्रलिखित विशेषताएँ हैं -
कृषि कार्य, पशुपालन, पत्थर के औजारों का घर्षित व चमकदार होना, मृद्भाण्ड बनाना, चाक का आविष्कार, पहिये का आविष्कार, आग का व्यापक प्रयोग आदि।
उपरोक्त समस्त साक्ष्य भारतीय नवपाषाण काल में मिले हैं।
· नवपाषाण (Neolithic period) शब्द का
सर्वप्रथम बार प्रयोग ‘सर जान लुबाक’
ने 1865 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘प्री हिस्टोरिका’
में में किया था।
· भारतीय महाद्वीप
में कृषि एवं प्राचीन कच्चे घरों का प्राचीनतम साक्ष्य ‘मेहरगढ़’ (पाकिस्तान-ब्लूचिस्तान)
से प्राप्त हुआ है। यहाँ से प्राप्त प्रमुख अवशेषों में- जौ, गेहूँ की तीन किस्में, कपास हैं। यह
साक्ष्य लगभग 7000 ई. पू. के
आस-पास का माना जाता है।
· इसी काल के लोग
सूत कातना (Spining) बुनना (Weaving) जान गये थे अर्थात् कपड़े बनाना जान गये।
· ‘चावल’ के प्राचीनतम साक्ष्य ‘कोल्डिहवा’ (उ0प्र0-इलाहाबाद) से प्राप्त हुए है। यह साक्ष्य लगभग 6000 ई. पू. के आस-पास का माना जाता है। चावल का यह प्रमाण भारत ही नहीं अपितु विश्व का सबसे प्राचीनतम्
साक्ष्य माना जाता है।
· भारत में सबसे
प्राचीनतम मृद्भाण्ड ‘चोपानी माण्डो’
(उ0प्र0-इलाहाबाद) से प्राप्त हुए
हैं। यह भारत ही नहीं विश्व का सबसे प्राचीनतम्
मृद्भाण्ड् है, साथ ही साथ यहाँ
से ‘मधुमक्खी’ के छत्ते’ के आकार एवं बनावट की झोपड़िया प्राप्त हुई है।
· भारत के उत्तरतम्
छोर अर्थात् जम्मू-कश्मीर के दो प्रसिद्ध नवपाषाणिक स्थल-‘बुर्जाहोम’ एवं ‘गुफरकाल’ है।
· बुर्जाहोम: यहाँ गर्तावास (जमीन के अन्दर बने घर) के
साक्ष्य सहित एक अण्डाकार कब्र से शव के साथ कुत्ता दफनाया हुआ मिला है। यही से
सर्वाधिक नवपाषाण कालीन उपकरण भी मिले है।
गुफरकाल- इसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘‘कुम्हार की गुफा’’। यहाँ से भी गर्तावासों के साक्ष्य मिले हैं। साथ ही साथ
यहाँ से हड्डी के बने औजार प्राप्त हुए हैं।
· भारत के
मध्य-पूर्व क्षेत्र (दक्षिण बिहार) स्थित प्रमुख नवपाषाणिक स्थल ‘चिरांद’ है। यहाँ से भी बड़ी मात्रा में नवपाषाणिक औजार (दूसरा सर्वाधिक) प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा
यहाँ से हिरण की सींगों से निर्मित औजार प्राप्त हुए हैं। यहाँ से जली मिट्टी में
धान की भूसी (चावल) के साक्ष्य मिले हैं।
दक्षिण भारतीय नव-पाषाणिक स्थल:
उत्तर भारत की भाँति दक्षिण भारत में भी नवपाषाणिक संकेत
विभिन्न स्थलों से प्राप्त हुए हैं, जो इस प्रकार है-
कर्नाटक
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भास्की, ब्रहागिरि,
हल्लूर, कोडक्कल, पिपलीहल,
संगनकल्लू, टी. नरसीपुर एवं टेक्कलकोटा आदि।
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आंध्र प्रदेश
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उतनूर, कोडेकल,
नागार्जुनीकोंडा एवं पलावोय आदि।
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तमिलनाडु
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पैयमपल्ली
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दक्षिण भारतीय नवपाषाणिक स्थलों में कृषि की अपेक्षा
पशुपालन के साक्ष्य अधिक मिले हैं तथा यहाँ नवपाषाण सांस्कृतिक साक्ष्य लगभग 1000 ई. पू. तक प्राप्त होता है। दक्षिण भारतीय
नवपाषाणिक संस्कृति की सर्वप्रमुख विशिष्टता- ‘अंश टीला (राख का
ढेर) संस्कृति है।
अंशटीला (राख का ढेर)-
· दक्षिण भारतीय नवपाषाणिक लोग घर के बाहर लकड़ी के बाड़ लगाकर उसमें अपने पशुओं को रखते थे। पशुओं के ‘गोबर’ इत्यादि इकट्ठा हो जाने पर सम्पूर्ण बाड़ों को जलाकर, नया बाड़ा बना लेते थे,जिससे जगह-जगह राख के ढेर इकट्ठा पाये गये, इसे ही अंशटीला संस्कृति कहते है।
· टेक्कलकोटा
(कर्नाटक) से सोने के बने आभूषण प्राप्त हुए हैं।
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